ना मैं बेगुनाह था, ना गुनाह तेरा सामने आया,
इल्जाम, बिचरे ये प्यार पे लगा, कहे बुरी साया,
अब रो के क्या हासिल है, प्यार तो मिल न पाया,
बस याद करो उस पल को, जो मिलाने हमे लाया,
खुश रहो, आगे भी, जैसे हो आसपास मेरी साया!
-उत्कर्ष©
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