शीर्षक- विदाई
तेरे जाने से इस घर की रौनकें खो जायेंगी
चहल-पहल करती खुशियाँ भी सो जायेंगी
तेरी मासूमियत मेरी धमनियों में यूँ पिघलेंगी
तेरी यादें मेरी आँखों के रास्ते होकर निकलेंगी
माना इस घर से तेरी विदाई जरूर हो जायेगी
फिर तेरे जाते ही मेरी हिम्मत खुद टूट जायेगी
इक निवाला तेरे प्यार का फिर कब मिलेगा
तेरे बिन मुर्झाया फूल ना जाने कब खिलेगा
तू इस घर की मान मर्यादा जाने कैसे संजोई
तुझे हर किसी ने डाटा लेकिन कभी ना रोई
आखिर तू अपनी होकर भी कैसे हुई पराई
ये दुनिया की रीत पहले किस घर ने चलाई
बेटी के विदा होने का दर्द भला कौन समझेगा
माँ की आँखों में बिछड़न यहाँ कौन समझेगा
तेरे लिए तेरा भाई पलकें बिछा कर रखेगा
तुझे दुनिया की तकलीफों से बचा कर रखेगा
हे ईश्वर बहन की विदाई में कोई कमी ना हो
चाहे मेरे ऊपर आसमा और नीचे जमीं ना हो
मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसके भंडार में भर दो
जितना सुख यहा मिला उसके घर द्वार में भर दो
ज्योति प्रकाश राय
भदोही, उत्तर प्रदेश
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