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🌙 एक ख़ूबसूरत शाम — ज़िंदगी की नर्म सी ग़ज़ल
शाम का वक़्त हमेशा से दिलकश रहा है। जब आसमान की पेशानी पर हल्की-सी सुनहरी रौशनी उतरती है, तो ऐसा लगता है जैसे कुदरत ने अपनी तस्वीर में ख़ूबसूरती की एक नई लकीर जोड़ दी हो। हवा में ठंडक की हल्की सी लरज़िश, पर दिल में एक अजीब-सी गर्माहट… शाम सच में रूह को सकून देने का वक़्त है।
जिस तरह दिन की भाग-दौड़ हमें थका देती है, उसी तरह शाम अपने ठहरे हुए लम्हों से हमें फिर से ज़िंदा कर देती है। यह वो पहर है जब इंसान अपने दिल से बात करता है—
कभी चाय की भाप में,
कभी ढलती धूप में,
और कभी खामोशी की सरगोशियों में।
कभी-कभी लगता है शाम एक मुनाजात है—दुआओं से भरी, उम्मीदों से भीगी।
हर ढलता सूरज अपने साथ एक नया सबक़ छोड़ जाता है कि अंधेरा जितना गहरा हो, सितारे उतने ही चमकते हैं।
शाम की नर्मी, उसकी रुमानियत, और उसकी खामोशी दिल की थकान को ऐसे धो देती है जैसे बरसात की पहली बूंदें मिट्टी की प्यास बुझा देती हैं।
आज की इस शाम से बस इतना-सा पैग़ाम लिया जाए—
ज़िंदगी को हर लम्हे महसूस करो, क्योंकि शामें लौटकर तो आती हैं,
मगर हर शाम का रंग, हर शाम की खुशबू, और हर शाम का एहसास फिर वही नहीं होता।
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