"ऐ रात, ठहर जा ज़रा...."
ऐ रात,
फिर तेरे आँचल तले बैठी हूँ,
वो बातें लेकर
जो कहना नहीं चाहती,
मगर अब छुपा भी नहीं पा रही हूँ।
तू ही तो मेरे हर दर्द की गवाह है,
तूने ही देखा है
कैसे मैं बात अधूरी छोड़कर
ख़ामोशियों में सिमट जाती हूँ।
तू ही तो जानती है
मैं कितनी बार मुस्कुराई हूँ
बस आँसुओं को गिरने से रोकने के लिए।
तेरे आँचल में जब आँसू टपकते हैं,
तो लगता है, जैसे तू भी
थोड़ी देर को रो लेती है मेरे साथ।
तेरे सन्नाटे में अब सुकून मिलता है,
वरना इन ख़यालों के दरमियाँ
शोर बहुत है...
लेकिन तू भी अजीब है,
हर रोज़ आती है
और हर रोज़
मुझे थोड़ा और तन्हा कर जाती है।
सुनो,
आज ज़रा देर से जाना,
क्योंकि कुछ एहसास ऐसे हैं
जो अब तक लफ़्ज़ों में ढल नहीं पाए...
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️