"अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल"
ना जाने किस ग़लतफ़हमी का हम शिकार हो गए,
बे-ख़ता होकर भी उनकी निगाहों में ख़तावार हो गए।
अजब है हम-नफ़स का ये अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल भी,
इल्म नहीं, किस बात से हमसे बेज़ार हो गए।
ख़ुद को मार के अल्फ़ाज़ पन्नों पर उतारती हूँ मैं,
शायद वो समझते हैं, हम मगरूर क़लमकार हो गए।
गिले-शिकवे और कीना ही लिखा है तक़दीर में,
अब हर मरहम मेरे ज़ख़्मों पर बे-असरदार हो गए।
जो दर्द दिल में थे, वही अल्फ़ाज़ का श्रृंगार हो गए,
हम तन्हाई में लिखते-लिखते शायर नामवर हो गए।
अब मेरी ख़ामोशियों को भी इल्ज़ाम दिया जाता है,
"कीर्ति", हर इक मोड़ पर किस्मत से लाचार हो गए।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️
हम-नफ़स = दोस्त, मित्र
अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल = नज़रअंदाज़ करना, बेरुखी का तरीका
इल्म = ज्ञान, जानकारी
बेज़ार = खफ़ा, नाराज़
कीना = दुश्मनी, रंज