"मैंने खिड़की से देखा"
मेरे दरिचे से सुनी मैंने चीखें गूंजते हुए,
खिड़की से देखा सारा मंज़र सहमते हुए।
चौखट भी रोई उसकी दर्द-ए-सदा सुनकर,
जब उस रूह को देखा मैंने सिहरते हुए।
उसके आँचल में टूटी चूड़ियाँ बहुत कुछ बोल गईं,
सपने गिरते गए जैसे पत्ते झड़ते हुए।
हर दहलीज़ पर ख़ामोशी का साया गहरा था,
मैंने इंसान को देखा, इंसानियत मिटते हुए।
चाँद ढक गया था बादलों के पर्दे में कहीं,
शायद शर्मिंदा था वो ये मंज़र देखते हुए।
मैं भी पत्थर बनी बैठी रही कुछ देर तक,
दिल ने चाहा चिल्ला उठूँ, मगर थरथराते हुए।
"कीर्ति" उस लम्हे का बोझ नहीं उतरेगा उम्रभर दिल से,
ज़ब मैंने देखा था उसे बिखरते हुए, लहू बहते हुए।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️