"रूठी हवा"
ऐ हवा, क्या तू भी ख़फ़ा हो गई है,
तेरे रुख़ की तरह अब जुदा हो गई है।
तू जो लायी थी ख़ुशबू किसी नाम की,
अब वही याद बद्दुआ हो गई है।
तेरे झोंकों में ठहरती थी धड़कन कभी,
अब तेरी आहट भी ख़ला हो गई है।
ज़िंदगी ने सिखाया अजब फ़लसफ़ा,
जो कभी चाह थी — अब सज़ा हो गई है।
हर दुआ अब तेरे साए में खो गई,
तेरी ख़ामोशी ही दवा हो गई है।
"कीर्ति" अब किससे गिला कीजिए,
मुझसे यूँ रूठ कर, हवा बेवफा हो गई है।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️