तुम कौन हो,
कहाँ से आए हो?
मैंने तो कभी माँगा नहीं तुम्हें,
कभी चाहा भी नहीं...
फिर क्यों बार-बार
लौट आते हो?
क्या हो तुम?
ऐसे क्यों हो?
जब भी मैं तुम्हें ठुकरा देता हूँ,
तब भी मुस्कुरा क्यों जाते हो?
क्या मुझसे डर नहीं लगता?
गुस्सा नहीं आता कभी?
मुझे यूँ क्यों सताते हो?
जाओ न तुम भी,
सबकी तरह...
छोड़ दो मुझे तन्हा,
मैं तुम्हें संभाल नहीं सकता।
जाओ तुम...
अब भी हँस रहे हो?
शायद अब समझ गया हूँ—
तुम कौन हो मेरे।
तुम तो मुझमें ही हो,
मेरे साए हो,
मेरे अपने हो।
ठीक है फिर,
अँधेरे में भी मत जाना मुझे छोड़कर,
वरना मैं भूल जाऊँगा...
कि तुम कौन हो मेरे।