संघ है क्या?
संघ सबसे पहले और सबसे गहरा अर्थ महोपनिषद की इस सूक्ति से प्रकट होता है—
"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥"
अर्थात – "यह अपना है, वह पराया है" – ऐसी संकीर्ण सोच तो छोटे मन वालों की होती है।
उदार हृदय वाले लोग तो पूरी वसुधा को ही अपना परिवार मानते हैं।
संघ वही है—
जहाँ सब नदियाँ आकर मिलती हैं, वही महासिंधु है।
जहाँ सारे मत, विचार, भाव और संस्कृतियाँ एकजुट होकर बहती हैं, वही संघ है।
हम वही हैं जो पूरी दुनिया को कुटुंब मानते हैं।
और यही भाव है – "हम हिंदू हैं। – जतिन त्यागी