आज हम इतने दोहरे चरित्र के क्यू हो गए है।
एक वक्त था जब हम बच्चे थे,
हमारी सभी अच्छी बुरी चीजों पे हमारे
मम्मी - पापा का का अपना एक विचार होता था।
हम अपनी सारी खुशियां उनसे बताने के लिए उत्सुक रहते थे।
फिर अचानक एक दिन हमे लगने लगा कि हम बड़े और समझदार हो गए है। हमें अपनी पर्सनल स्पेस और प्राइवेसी की जरूरत पड़ने लगी। हम अपनी चीजों कानून छिपाने लगे।
ये कैसा दोहरा मुखौटा है हमारा , विचार करने वाली बात तो है।