श्रीरामचरितमानस,भाग - 4
।। बालकाण्ड ।।
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन ।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥
शब्दार्थ
जो – जो (जिसका)
सुमिरत – स्मरण करने पर, याद करने पर
सिधि – सिद्धि, सफलता, पूर्णता
होइ – प्राप्त होती है
गन नायक – गणों के नायक, गणपति (श्री गणेश)
करिबर बदन – हाथी के समान मुख वाले
करउ – करें
अनुग्रह – कृपा
सोइ – वही
बुद्धि रासि – बुद्धि का भंडार
सुभ गुन – शुभ गुणों से युक्त
सदन – घर, निवास
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साधारण अर्थ
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिनका स्मरण करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जो गणों के नायक और हाथीमुख वाले हैं, वे बुद्धि और शुभ गुणों के निवास श्री गणेश जी हम पर कृपा करें।
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मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन ।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥
शब्दार्थ
मूक होइ – चुप हो जाएँ, शांत हो जाएँ
बाचाल – बोलने वाले, वाचाल
पंगु – चलने में असमर्थ, कमजोर
चढ़इ – चढ़ते हैं, पहुंचते हैं
गिरिबर गहन – पर्वत के गहन स्थान पर, पहाड़ की गहरी जगह पर
जासु – जिसका
कृपाँ सो – कृपा करने वाला
दयाल – दयालु, कृपालु
द्रवउ – प्रवाहित करे, बहाए
सकल – सभी, सम्पूर्ण
कलि मल दहन – कलियुग की सभी पापों और दोषों का नाश, अज्ञान और बुराई का नाश
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साधारण अर्थ
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिनकी कृपा से मूक बोलने लगे, वाचाल शांत हो जाएँ, और कमजोर पंगु भी पर्वत की गहरी जगह तक पहुँच सके; वही दयालु भगवान हैं, जो अपनी कृपा से कलियुग के सभी पापों, दोषों और अज्ञान को नष्ट कर देते हैं।
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