कैलाश पर्वत : बर्फ़ की चादर में लिपटा सृष्टि का अनसुलझा रहस्य!
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हिमालय की चोटियों में, जहाँ हवा पतली हो जाती है और समय जैसे ठहर जाता है, वहाँ खड़ा है एक शिखर—कैलाश पर्वत।
यह सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि रहस्यों की जमी हुई गाथा है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने यहाँ अपने रहस्य किसी ताले में बंद कर दिए हों और चाबी मानव सभ्यता से छिपा ली हो।
1. शिखर जो किसी ने नहीं छुआ।
6,638 मीटर ऊँचा कैलाश, ऊँचाई में एवरेस्ट से छोटा है, पर चुनौती में कहीं बड़ा। दुनिया के सबसे साहसी पर्वतारोही भी इसकी चोटी तक नहीं पहुँच पाए।
क्यों?
क्योंकि चढ़ाई शुरू होते ही थकान इतनी बढ़ जाती है जैसे शरीर से प्राण रस खिंच रहा हो। कुछ पर्वतारोहियों ने तो यहाँ अचानक बूढ़ा हो जाने की अनुभूति तक बताई है। मानो यह पर्वत स्वयं तय करता हो—कौन उसके करीब जाएगा, और कौन नहीं।
2. चारों दिशाओं का ध्रुवबिंदु
कैलाश को घेरकर चार महान नदियाँ बहती हैं—सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली।
कल्पना कीजिए, एक ही पर्वत से चारों दिशाओं में जीवनदायिनी नदियाँ बह निकलीं। यह संयोग नहीं हो सकता। यह मानो सृष्टि का जलमंडल का नियंत्रण केंद्र है।
3. पौराणिक गूढ़ता
हिंदुओं के लिए यह शिव का धाम है, जहाँ वह समाधि में लीन हैं।
बौद्ध इसे "कांग रिंपोचे" यानी रत्नों का पर्वत कहते हैं।
जैनों के लिए यह मुक्ति-स्थल है, जहाँ आदिनाथ ने कैवल्य पाया।
और तिब्बती बॉन धर्म इसे ब्रह्मांड की धुरी मानता है।
चार धर्म, चार दृष्टिकोण—पर सभी इसे सृष्टि का केंद्र मानते हैं। यह कैसा संयोग, या यूँ कहें कि कैसा दिव्य संकेत!
4. झीलों का रहस्य : जीवन और मृत्यु का द्वंद्व।
कैलाश के चरणों में दो झीलें हैं—मानसरोवर और राक्षसताल।
मानसरोवर गोल है, शांत, निर्मल और सौम्य—मानो चेतना की झील।
राक्षसताल अर्धचंद्राकार, उथल-पुथल भरा, अशांत—मानो अंधकार की झील।
सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का यह द्वंद्व साथ-साथ अस्तित्व में है। मानो स्वयं कैलाश कह रहा हो—“सृष्टि संतुलन पर टिकी है।”
5. वैज्ञानिक गुत्थियाँ
उपग्रह से देखने पर कैलाश का आकार प्राकृतिक नहीं लगता। यह किसी विशाल पिरामिड जैसा है, और आसपास दर्जनों छोटे-छोटे पिरामिडनुमा शिखर पाए गए हैं।
यात्रियों ने अनुभव किया कि यहाँ घड़ियाँ तेज़ चलने लगती हैं, दिशा-बोध बिगड़ जाता है। मानो यह पर्वत समय और स्थान की धुरी को मोड़ देता हो।
परिक्रमा के दौरान एक विचित्र बात सामने आती है—चाहे आप कितनी भी दूर चले जाएँ, कैलाश का शिखर मानो आपके साथ-साथ चलता है, हमेशा एक ही दूरी पर।
6. रहस्य का अंतिम परदा
कैलाश हमें यह सिखाता है कि मनुष्य सब कुछ जीत नहीं सकता। कुछ स्थल केवल अनुभव करने के लिए हैं, विजय पाने के लिए नहीं।
यह पर्वत अहंकार तोड़ता है, श्रद्धा जगाता है और चेतना की गहराइयों में उतरने का निमंत्रण देता है।
कैलाश खड़ा है—
निःशब्द, अचल,
मानो ब्रह्मांड का हृदय।
जो उसके रहस्य को समझना चाहता है, उसे तर्क नहीं, श्रद्धा और समर्पण की आवश्यकता है।
आर के भोपाल।