टूटा भरोसा
वो यूँ ही नहीं रोई थी,
आँखों में आँसू की नदियाँ तब बह निकलीं,
जब उसका भरोसा अपने ही तोड़ गए,
दिल के आईने को पत्थरों से तोड़ गए।
उसका जन्म उस घर में हुआ,
जहाँ परंपराओं की दीवारें ऊँची थीं,
जहाँ उसकी हँसी भी क़ैद थी,
और सपनों की परछाइयाँ भी दूजी थीं।
वो हर बार सहती रही,
सहनशीलता की चुप चादर ओढ़े रही,
पर जिस दिन अपने ही चेहरे बदल गए,
उसके भीतर के सारे दीपक बुझ गए।
रोना उसके लिए कमजोरी नहीं था,
वो उसके दिल की चीख थी,
एक टूटा हुआ विश्वास था,
जो आँसुओं की ज़बान बन गया।
अब वो रोकर और मज़बूत हो गई है,
उसके आँसू अब उसकी ताक़त हैं,
क्योंकि टूटकर ही इंसान सँवरता है,
और राख से ही नया जीवन निखरता है।