ज़रा सोच कर देखो—
अगले साल इसी दिन तुम कहां होगे?
कौन तुम्हारे साथ होगा,
कौन इस महफ़िल से चुपचाप रुख़्सत हो जाएगा,
या शायद तुम ही अलविदा कह दोगे।
यक़ीन नहीं आता तो पीछे मुड़ कर देखो—
पिछले साल इन दिनों तुम किन उलझनों में थे,
किस खुशी के पीछे भाग रहे थे,
या किन छोटी-छोटी बेतुकी चिंताओं ने तुम्हें बेचैन कर रखा था,
जिनका आज के दिन से कोई वास्ता ही नहीं।
इसलिए डरो मत आने वाले कल से।
जो होना है, वो होकर रहेगा।
आज पर भरोसा करो।
इसे खुलकर जियो,
बेफ़िक्री से,
आजादी से,
बाग़ी बनकर।