मैं कोई लेखक नहीं,
बस कुछ शब्द जोड़कर वाक्य बना देता हूँ।
मैं कोई किसान नहीं,
फिर भी पुश्तैनी ज़मीन में कुछ बीज बो देता हूँ।
मैं कोई नौकरीपेशा नहीं,
सिर्फ़ समय काटने ऑफिस चला जाता हूँ।
मैं कोई व्यापारी नहीं,
उधार के पैसों से अपना कारोबार चला लेता हूँ।
मेरा सच में कुछ भी नहीं है,
फिर भी लोग मुझे धनवान मानते हैं।
अजीब विडम्बना है —
यहाँ दिखावे से इंसान की असलियत तक
आसानी से ढक दी जाती है।