पत्थर की मूर्तियों में खोजते हैं लोग भगवान,
और उन्हीं मूर्तियों से पंडित सजाते हैं अपना संसार।
मेलों में भूखे बच्चों की आँखों में सवाल हैं,
पर उनके लिए ये भी रोटी का साधन बन गया है।
फूल वाला, प्रसाद वाला — सब डर दिखाते हैं भगवान का,
और उनके पीछे कमेटियाँ चलाती हैं व्यापार का गान।
तो बताओ —
भगवान सच में पत्थर में है,
या उन भूखी आँखों में जो हर रोज़ हमें तकती हैं?