जीवन के रास्ते कभी आसान नहीं होते। मैंने अनगिनत बार देखा है कि लोग अपनी परिस्थितियों से हार मान बैठते हैं।
कभी कोई कहता है — "मेरे पास अच्छी शिक्षा नहीं है"
कभी कोई मान लेता है — "मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती"
कोई सोचता है — "मेरे पास पैसे नहीं हैं"
तो कोई यह मानकर बैठ जाता है — "मुझमें कोई प्रतिभा ही नहीं है"
और फिर, इन विचारों के बोझ तले दबकर, इंसान अपने सपनों की डोर किसी और के हाथ में सौंप देता है।
धीरे-धीरे वह इस स्थिति का अभ्यस्त हो जाता है कि —
वह क्या खाएगा, क्या पहनेगा, कहाँ रहेगा, और कैसे जिएगा… ये सब कोई और तय करे।
पर सच यह है कि कमज़ोर आप तब होते हैं, जब अपनी क्षमता पर संदेह करने लगते हैं।
धन, भाषा, समाज — इनमें से कोई भी आपके रास्ते की असली रुकावट नहीं है। असली रुकावट है आपका डर और आपकी हार मानने की आदत।
हर मनुष्य के भीतर एक अनमोल प्रतिभा छुपी होती है। कोई शब्दों में जादू बुनता है, कोई हाथों से कला रचता है, कोई विचारों से दुनिया बदल देता है। फर्क बस इतना है — कुछ लोग अपनी प्रतिभा पहचान लेते हैं, और कुछ जीवनभर तलाश में भटकते रहते हैं।
चाहे आप पढ़े-लिखे न हों, चाहे आपके पास संसाधन न हों, इस दुनिया में अवसरों की कोई कमी नहीं है।
बस एक सवाल खुद से पूछना है —
"मैं क्या कर सकता हूँ?"