जीवन अवसान की ओर
*******
यह विडम्बना है या हमारी सोच का तरीका
यह जानते हुए भी कि जन्म के साथ ही
हमारी जीवन यात्रा अपनी मंजिल की ओर
सतत बढ़ने लगती है।
हर पल, क्षण, सेकेंड, मिनट, घंटे,
महीने, वर्ष के साथ ही हमारी उम्र
अपने अवसान की ओर बढ़ती रहती है।
और हम बड़े गर्व से कहते हैं
कि हमारी उम्र बढ़ रही है,
इस सच को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं
कि वास्तव में हमारी उम्र घट रही है।
शायद हम इसी गुमान में अपनी खुशियाँ खोज रहे हैं,
सच से दो-दो हाथ करते हुए इठलाते हैं।
अच्छा है! यदि आप खुद को भरमाते नहीं
सच का सच में सम्मान करते हैं,
जीने के लिए अपने तरीके का उपयोग करते हैं,
घटती उम्र के बढ़ने का गुरूर नहीं करते हैं
जीवन के हर पल को ईश्वर का उपहार समझते हैं,
ईश्वरीय व्यवस्था में अवरोधक बनने का
प्रयास या दुस्साहस नहीं करते हैं,
अपने ढंग से जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं,
उम्र घट रही है या बढ़ रही है
इसके फेर में नहीं फँसते हैं,
ये मानव जीवन ईश्वर ने जो दिया हमको
इसके लिए हम उनका आभार धन्यवाद करते हैं
बारंबार नमन वंदन करते हैं,
अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव