"मैं फिर भी मुस्कुरा दूँगा..."
---
✍️ कविता:
टूटे सपनों की राख से,
मैं फिर एक दीप जलाऊँगा।
बिखरी हुई इन सांसों में,
एक नई सुबह बसाऊँगा।
छूटे रिश्तों की परछाइयाँ,
अब भी दिल को डराती हैं,
पर उन्हीं अधूरी बातों से,
मैं खुद को गढ़ता जाऊँगा।
जो गया, वो था जरूरी,
जो बचा, वही है जीवन।
जो बीत गया, वो सीख बना,
अब बाकी है मेरा स्वप्न।
अंधेरे जब घेरेंगे मुझको,
मैं खुद को तारा बनाऊँगा,
और रोशनी के इन टुकड़ों से,
एक नया आसमां सजाऊँगा।
मैं हार कर भी जीत लूंगा,
बस हौसलों का गीत गाऊँगा,
दर्द की इन गहराइयों में,
मैं फिर भी मुस्कुरा दूँगा…