Hindi Quote in Poem by kumar shivam hindustani

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जब झूठ को सच का चोला पहनाया जाता है, जब इंसानियत सियासत की सीढ़ियों में गुम हो जाती है, तब कलम चुप नहीं रहती।

ये कविता उस खामोशी के खिलाफ एक चीख है... उन सवालों की गूंज है, जिनका जवाब देने से हम सब डरते हैं।

पेश है मेरी कविता - 'झूठ की ज़मीन पर, फरेब के मकान हैं"

झूठ की जमीन पर
फरेब के मकान है
जलती चिताओं में
मर रहा इमान है
सत्ता की किस्सों में
खून की है होलियां
मजहबों के नाम पर
चल रहीं है गोलियां
इंसानियत है मिट गई
इंसान अब बचा कहाँ
जाति धरम में बटा ही था
अब भाषाओं में बट रहा
दंगे हो जाते है
बचपना कहीं खो जाता है
हैवानियत के साये में
महिलाओं को नोचा जाता है
तब चीखती है रूहें
तड़पता इंसान है
झूठ की जमीन पर
फरेब के मकान है
खून के है प्यासे सब
सब जगह है खूनी जान ले
तू भी है खूनी
न मानता हो तो मान ले
हजारों घटनाओं में तू
धूर्त था चुप खड़ा
दूसरों के लफड़ों में
मैं क्यूँ पडूँ भला
बस तभी खून हुआ इंसानियत का
तभी मरा इंसान है
झूठ की जमीन
पर फरेब के मकान हैं

- Kumar shivam hindustani

Hindi Poem by kumar shivam hindustani : 111986749
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