चलो मित्र यमलोक चलो
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आज सायं तीन बजे मित्र यमराज आये
और बिना लाग लपेट फरमाये।
बस प्रभु! अब आप मेरे साथ चलिए
चाहे तो एक पर एक का फ्री में लाभ भी ले लीजिए
और भाभी जी भी साथ ले चलिए।
मैंने कहा - थोड़ा धैर्य धरो
कुछ जलपान तो ग्रहण करो,
फिर जी भरकर मन की बात करो।
यमराज ने हाथ जोड़ लिए
मुझे जलपान नहीं करना
बात मेरी प्रतिष्ठा पर आ गई है
आज रात का भोजन यमलोक में
आप दोनों मेरे साथ करिए।
मेरे चेले भी आपसे मिलना चाहते हैं
आपके सम्मान में भोज देना चाहते हैं,
आपको छूकर देखना चाहते हैं
असली नकली का भ्रम मिटाना चाहते हैं।
अब आप मेरी लाज रखिए
मेरे चेलों का मुँह बंद कीजिए
हमें तो पता ही है कि आप मेरे मित्र हैं,
यह बात वहीं चलकर अपने मुँह से कह दीजिए।
मैंने हँसकर कहा- बस इतनी सी बात है
इसमें क्या खास है?
फोन मिला अभी बोल देता हूँ,
यदि तू चाहता है, तो तेरे साथ अभी चल देता हूँ।
कौन सा मुझे चुनाव लड़ना है
विधायक सांसद या मंत्री बनना है।
यमराज बच्चों की तरह खुश हो उछलने लगा,
मेरी जय जयकार करने लगा
उसकी आँखों में आँसू आ गये,
उसे पोंछकर वो कहने लगा
आपने मेरा मान रखा लिया प्रभु!
मित्रता क्या होती है, इसका बोध करा दिया है,
तो मैंने भी आपको यमलोक ले चलने का प्रस्ताव
तत्काल वापस ले लिया।
अब जल्दी जलपान नहीं भोजन कराओ,
मुझे विदा कर चैन की बंशी बजाओ
फिर चादर तानकर सो जाओ।
सुधीर श्रीवास्तव