खेत-खलिहान, बाग-मेदान,
उपजाऊ भूमि- साफ आसमान
और गोबर की दिवार- पड़ोस की काकी का कच्चा मकान। सब बदलता जा रहा है।
शायद शहर गाँव की ओर आ रहा है।
कभी शमी पर कोयल गाती थी।
भोर में मोरों की एक टोली आती थी।
बाग में इमली लग जाती थी।
रात में नानी लोरी सुनाती थी।
अब कहाँ है यह सब?
अब तो यह सब छुटता जा रहा है,
शायद शहर गाँव की ओर आ रहा है।
-सत्यवीर सिंह