दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*जल, नदी, तालाब, तृषित, मानसून*
*जल* बिन जीवन शून्य है, इन्द्र देव जी धन्य।
जीव जगत है चाहता, हम सब हों चैतन्य।।।
*नदी* व्यथित है प्यास से, पोखर हुए उदास।
जीव-जंतु-निर्जीव की, सुखद टूटती आस ।।
पूर दिए *तालाब* सब, उस पर बने मकान।
भूजल का स्तर गिरा, सभी लोग हैरान।।
*तृषित* व्यथित मौसम हुआ, आग उगलता व्योम।
दिनकर आँख तरेरता, मन को भाता सोम।।
दस्तक सुनकर खुश हुये, दौड़े स्वागत द्वार।
*मानसून* है आ रहा, पहनाओ सब हार।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*