तुम्हारे और मेरे बीच का पुल
चुप्पियों से बना हुआ है—
एक नज़र, एक अधूरी बात,
हवा में बसी दबी दुआ है।
उम्मीदों से जो कह न पाए,
सपनों में जो छुपा हुआ था,
कदम बढ़े फिर रुक भी गए,
डर था कोई, जो साथ चला था।
ख़ामोशी जब बढ़ने लगती है,
तो हल्का सा हिलता है वो पुल—
फिर भी वक़्त से टकराकर,
अब तक संभाले है उसका मूल।
कभी तो हम चल पड़ेंगे,
जहाँ न दिल डरे, न आँखें झुके—
उस पार मिलेगा शायद कुछ,
जो अब भी दिलों में बचा है।