सादगी के मारे
"When the mind is silent, the Self shines forth"
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पुरसुकून मुरशिद ब-मजाज़ सादगी के मारे हैं,
पा-ए-दिलकश सज-धज के रोशनी उत्तारे हैं।
छाँव की तरह थी दुआएँ, जो लम्हों से उतरीं,
हाए क्या परोस दियाह, वो आँचल के तारे हैं।
दुनिया मतला समझ जाएँ, पराए अपने होते हैं,
बेश-तयार महफ़िल में बैठे किरदार फूंके गुबारे हैं।
ग़म की चौखट पे चिराग़ों ने सजाया सब्र का रंग,
जुनूँ की राहों में इक उम्र से बाद-ए-सबा हारे हैं।
नूर-ए-हक़ बन के जो आये, वो थे सच्चे लोग,
ज़िल्लत ये रेत में जो सच सौदा-ज़दः सहारे हैं।
तर्बियत्न माँ के पाँव छुए, फ़क़त वो ही जानें,
जन्नतें क्यों बनाई क़दमों से बेशुमार नजारे हैं।
ज़िक्र जिनका करते हैं हम हर सज्दे के बाद ,
वो सादगी ओढ़े फ़कीर अब भी वारे-न्यारे हैं।
आँख नम, दिल हरा, और लब पे सब्र का गीत,
दीदः-ए-शहला तस्वीरें तो दिल में उजियारे हैं।
ब-ताबीद हवेली से नहीं मिलती है मिट्टी की महक,
पस-ए-मर्ग टूटे हुए घरों में जुदा रिश्ते संवारे हैं।
‘नूर’ कहता है, फ़क़ीरी में भी इक शान प्यारे है,
जो न माँगे कुछ ज़माने से, वही धुर सितारे हैं।
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The world, a mere reflection, an apparition, void of substance and might, neither existent nor non-existent. The wise ones know this truth and let go of all mental constructs.
सप्रेम सविनय, जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर ।
04.05.2025
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