मैं खोज रही हूं
खुद को
कभी पा लेती हूं
कभी फिर से खो देती हूं
कभी जान लेती हूं सब
कभी फिर से अजनबी बन जाती हूं
जाने अनजाने
सबसे ज्यादा व्यथित किया है
सजा दे कर फिर
मरहम लगाती हूं
खुद को
कभी धूप बन कर
सहलाती हूं खुद को
कभी छांव बन
खुद में ही छुप जाती हूं
आशाओं की किरणों को समेट हर बार
जगमगाती हूं खुद को
बाहर वेदना है
भीतर है क्रंदन
जलमग्न आंखे
चेतना है गुमसुम
फिर हरा कर सारे गम
खोजती हूं खुद को
ArUu ✍️