सांवली लड़कियाँ
धूप की उस नस्ल से आती हैं
जो खेतों में झुकी औरतों की पीठ पर
पसीने के संग आई थी।
शरमाने पे
उनके गाल गुलाबी नहीं होते,
ना वे काजल से आँखें धारदार बनाती हैं।
उनकी बोली में कोई राग नहीं,
एकदम से कच्चे आम की खटास होती है।
वे जल्दी लड़कों की “क्रश” नहीं बनतीं,
क्योंकि ये देश “रूप” को सिर्फ़ गोरेपन में मापता है।
और सांवली लड़कियाँ के शून्य दशमलव पाँच एनएम की त्वचा के भीतर,
फ़ेयर एंड लवली क्रीम दाखिल कहाँ हो पाती है।
लेकिन एक दिन
ये लड़कियाँ अपने पैरों से धूल झाड़ते हुए कहेंगी—
“हम गोरी क्यों हों?
हम तो धूप की बेटियाँ हैं।
हम तो लाल जलती हुई लकड़ी पे सिंकी रोटियाँ हैं।
हम अपने रंग में
अपने पुरखों की धूप , दुख, और आत्मा लिए जन्मी हैं!”
सांवली लड़कियाँ
नीम की छाँव जैसी होती हैं,
झीनी ,कड़वी, मगर ठंडी।
जिनकी छाया में
इंकलाब उगता हैं।.
.kps .......
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