"अलार्म – वो धोखेबाज़ दोस्त"
सुबह-सुबह अलार्म चिल्लाया —
"उठ जा बेटा, ज़िंदगी इंतज़ार कर रही है!
मैं बोली— "भेज देना ज़िंदगी को व्हाट्सएप पे, मैं सो रही हूँ।"
अलार्म रोज़ बजता है,
मैं रोज़ snooze करती हूँ।
अब तो अलार्म भी थक गया है —
कहता है, “बहन तू उठे या ना उठे, मैं तो जा रहा हूँ… Good luck!”
नींद और मैं, एक अधूरी मोहब्बत हैं,
जिसे दुनिया की सारी ज़िम्मेदारियाँ अलग करना चाहती हैं।
पर हर सुबह, मैं उसी से मिलती हूँ —
5 मिनट और… बस 5 मिनट और…