🌹मातृ भाषा –हिंदी🌹
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जैसे
माँ के ललाट पर सुशोभित है बिंदी
वैसे ही
अनुपम है पावन पवित्र है
भाषाओं की रानी हिंदी
भावों की अभिव्यक्ति का है दर्पण
कभी कभी सख़्त तो कभी कभी कोमल
जैसे हो
मां का मन
रस छंद अलंकारों से सुसज्जित है रूपा
स्वर व्यंजन शब्द वाक्यों से बुनी काया
कभी कहीं सौम्य
कभी कहीं चंचल
जैसे हो
मां का लहराता आंचल
पूज्यनीय सम्माननीय परम पुनीता
कवि की कल्पना और लेखकों को लेखनी से लिखी गाथा
करते है प्रणाम,नमन वंदन
मां स्वरूपा मातृभाषा तुझे कोटि कोटि अभिनंदन
🙏🙏