क्रोध में बहके, शब्द न कहो,
जो दिलों के रिश्ते तोड़ जाएं।
गुस्से की आंधी बीते जब,
सच का सूरज न शर्मिंदा पाए।
हर भाव का अपना पल होता,
पर शब्दों का असर अमर होता।
कटु वचन के घाव गहरे,
जो न मरहम से भर पाता।
क्रोध क्षणिक, पर शब्द अमर,
सोचो, समझो, फिर मुख खोलो।
कभी ऐसा न हो, कि गुस्से में,
अपने ही सपनों को तुम तोड़ो।
शब्द वो चुनो, जो सत्य कहें,
पर दिल का मान भी साथ रखें।
कल जब गुस्सा शांत हो जाए,
तो आंखों में गर्व की चमक दिखें।
याद रखो, क्रोध क्षणिक ज्वाला है,
पर शब्दों का वजन अनमोल।
तोलो इन्हें हर हाल में,
चाहे हो मन में कितनी ही झोल।
सुप्रभात