ज्ञान का दीप जलाते, अज्ञान हरते जो,
तीन लोकों में पूज्य, हैं दत्त गुरु वो।
त्रिमूर्ति स्वरूप है, ब्रह्मा विष्णु महेश,
भक्तों के दुख हरते, करते जग को विशेष।
कैलास से उतरे, कृपा का वरदान,
हर हृदय में जगाते, प्रभु का गुणगान।
त्रेता में राम के संग, द्वापर में कृष्ण के पास,
कलियुग में भी देते, अपना अमर प्रकाश।
गाय और कुत्ते संग, वो करुणा का प्रतिरूप,
हर प्राणी का उद्धार, उनका है अनूप।
भक्ति, वैराग्य, और ज्ञान की धारा,
दत्त गुरु के चरणों में, मिलता है सहारा।
हे श्री गुरुदत्त, हमारा जीवन सार्थक करो,
अंधकार से निकाल, हमें प्रकाश से भरो।
तेरी लीला अपरंपार, तेरा नाम महान,
भक्तों के मन में सदा, बसा रहे तेरा स्थान।