गीत-संदर्भा-६
केशव मुझमें मौन पसरा है
इस विषाद का कारण क्या है?
तात खड़े हैं,युद्ध खड़ा है
रिश्तों का अंबार लगा है।
मेरे आगे मौन समय है
उस अतीत का चित्र लगा है,
केशव मेरे कर्मयोग में
कितना सुख, कितना दुख है?
पार्थ, सारे सुख में मैं रहता हूँ
सारे दुख भी मेरे हैं,
लाभ रहा हूँ,हानि रहा हूँ
जय -पराजय मैं ही हूँ।
* महेश रौतेला