गाँव का मौसम अच्छा लगता है
शहर में अब जी कहाँ लगता है
महंगी होटल में खाना
बेकार लगता है
माँ की रोटी के सामने
सब फीका लगता है
वो रोटी की खुशबू
वो मिट्टी के बर्तन
घरवालों के साथ
खाना अच्छा लगता है
शहर की चार दिवारी में
जीवन छोटा लगता है
गाँव में खुला आँगन
बहुत अच्छा लगता है...
-पारस निमावत