दिन की चौकसी जल्दी में निकल जाती है, सुबह दोपहर बाद शाम में ही ढल जाती है।
सोच समझ कहिए जो कहना हो किसी को, कही बात कभी कभी मुँह को निगल जाती है।
साये के सामने तो गुरूर भी है मोमबत्ती को, पर सख़्त मोम भी आँच तले पिघल जाती है।
ज़िंदगी में पल नहीं, पलों में ज़िंदगी भर लो बेकार ही है वो ज़िंदगी जो विफल जाती है।
लम्हा दर लम्हा जी लीजिए अपने आज को, ज़िंदगी कभी कभी हाथ से फिसल जाती है।