नफ़रत का खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता। यह केवल प्रेम की गैरहाजरी का परिणाम है।
आप आत्मा को भूलकर शरीर के मोह जाल में फंस गए है। आप इस नाशवान तन को सजाने-सँवारने, पालने-पोषने में लगे हुए हैं।
नाशवान् के लिए अविनाशी का त्याग न करें। आप एक गहरी नींद में हैं और अपने सत चित आनंद स्वरूप को भूल कर नाशवान में खोए हुए हैं।
जागिये और अपने घर वापसी कीजिये, आत्म-दर्शन कीजिये, केवल तभी आप नफरत को छोड़ सब में प्रेम भाव रख सकेंगे।