कुछ तो हे जो छुटा छुटा सा अधुरासा लगता है...
सबकुछ होते हुए भी कुछ खाली सा लगता है.....
रोशन उजालों में भी घना अंधेरा सा लगता है...
भरी मेहफिल में भी कोई रुठा रुठा सा लगता है.....
कुछ तो है जो चाहिये मुझे.....
सोचने पर भी जो ना मुमकिन सा लगता है.....
इसलिये तो सबकुछ होते हुए भी कुछ अधुरा सा लगता है...