भावनाओं की दौर में खुद को मिटा बैठे हैं,
आपके इंतजार में खुद को लुटा बैठे हैं,
आँसू थमते हैं, फिर बह जाते हैं,
हम अपना सब कुछ गवाएं बैठे हैं,
तड़प कर दिल से जो आह निकलती है,
हम क्या कहे आप से,
हम अपना सब कुछ गवाएं बैठे हैं।।
पल भर में बेचैनी बढ़ जाती हैं,
आँखों से नीर बह जाते हैं,
इस बेचैनी को कम करे कैसे?,
आप से दूर रहे कैसे?,
विरह की अग्नि जगाये बैठे हैं,
उसी में खुद को जलाये बैठे हैं।।
~आरुषि ठाकुर ✍️