वादियों में....
शरोवन
***
शाम के पहले ही सितारे से ज़ख्मों को कोई कुरेदने लगता है,
जैसे सूर्य ढलते ही वादियों में कुदरत का धुंआ उठने लगता है।
चूल्हा जलता है जिस घर में दो रोटियों के लिये,
मेरा अतीत उसी आग में चुपचाप जलने लगता है।
जब भी करते हैं याद तुझे मेरे बिगड़े हुये मांझी के साथ,
मेरी बदनामियों का इतिहास उबलने लगता है।
लोग तो जलाते हैं दिये को अपने घर में रोशनी के लिये,
उसे देखते ही मेरे दिल का चिराग जाने क्यों सुलगने लगता है?
रिवाज़-ए-दुनियां में मरने के बाद इंसान को जलाया करते हैं,
मेरा जिस्म तो सदा से जिंदा ही जला करता है।
महफिलें शबाब बन कर उफनती हैं जब रात की गहराइंयों में,
गानेवाला मेरी ख़ताओं को हिसाब लगाकर सुनाया करता है।
सर्कस में हंसाते हैं जोकर तमाशबीनों की तरह, देखने वालों को,
किस्मत से अपनी सूरत का मज़मा तो रोज़ ही लगा करता है।
समाप्त