छल से इंसान अपने ही लोगो को सरेआम बेच रहा है,
ना जाने क्यू अनजाने में पेड़ पाप का सींच रहा है,
ना काट सका वो कुकुर बस जैसे हाथी पे भोंक रहा है,
निगल ने वाले शब्द को कमजोरों पे आसानी से फेंक रहा है,
तमीज़ भूल के सिर्फ खुद के सपनो का बस घमंड देख रहा है,
शमशान न होते भी किसी के बदन पे अपने हाथ शेक रहा है,
मन की घृणा बातो में लाए, गंदकी को निचोड़ रहा है,
सहज भावना से अपने पाप को बड़ी सफाई से पोंछ रहा है,
खबर नहीं किसी को ऐसा मानने वाला खुद को उसमे धोप रहा है,
कमाया क्या ,दिखाया क्या इज्जत की बाते बस खोज रहा है,
चलाकिया इंसानों की देख ऊपरवाला भारी मन से हंस रहा है,
अरे !कोई तो समझाओ ये नादानो को की ऊपर से भी तुमको कोई देख रहा है।
~नंदी❤️