जात आदमी के
आसां नहीं समझना हर बात आदमी के,
कि हंसने पर हो जाते वारदात आदमी के।
बुझते नहीं कफन से,अरमां दफ़न दफ़न से,
जलते हैं तन बदन से, आलात आदमी के।
कि दिन में है बेचैनी और रातों को उलझन,
संभले नहीं संभलते हालात आदमी के।
खुदा भी इससे हारा, इसे चाहिए जग सारा,
जग बदले पर बदले ना , जात आदमी के।
अजय अमिताभ सुमन