सारे जहां से अच्छा लगता और तुम्हारा अच्छा कहना
सबसे अच्छे तुम लगते थे और तुम्हारा अच्छा कहना
कट जाते थे हंसते गाते
निश दिन करते बाते
रात से कैसे भोर हुई
जाने कैसे कट गयी राते
प्रीत अमर जो था करना मिल कर था हमें बिछड़ना
कभी इस्माइली कभी इमोजी
हम दोनों होके मनमौजी
और भी कितना अच्छा लगता
अच्छा अच्छा अच्छा कहना
अश्कों का है अब बहाना दिन भर तेरे याद में गाना
बात बात पर जब तुम
अच्छा अच्छा कहते थे
रट रट के हम भी अच्छा
अच्छा अच्छा कहते थे
और भी कितना अच्छा लगता तुमसे ही बातें करना
पास न हो पर दूर नहीं
मन में मेरे ही रहते हो
मन से दूर कहां जाओगे
कहां नहीं हम रहते हैं
बस अच्छा अच्छा लगता है तुझमें ही डूबे रहना
सालती है आज भी
और तुम्हारा दोषी बनना
खुद पे कितना इतराऊ मैं
निर्दोषी तो तुम भी न थे
फिर भी कितना अच्छा लगता गीतों में तुझे पिरोना
अरुणोदय सी उदित हुयी
सूर्यास्त सी अस्त
गीत प्रीत के रीत के
रच बस गये मेरे संग
मस्तानों सा मस्ताना बनना दीवानों सा दीवाना