क्या कहूं वक्त की खता क्या है
जिसने झेला जितना बस उसी को पता है
खुशी के पल हैं चार
तो उसके बाद गमों की लटा है
बचपन के बाद यौवन फिर बुढ़ापे की सजा है
जिसने कमाया पुन्न
उसी के पास जीवन का असली मजा है
धन तो धुल जाता है
जीवन के व्यापार में
सुख मिलता है उसको
जो बच जाता है इस कारोबार में
रात के बाद सुबह
फिर दिन की रज़ा है
करते जाओ कर्म
जो इस धरती की प्रथा है
नाचते रह जाओगे
तुम इस संसार में
और प्रभु मुस्कुराएंगे
अपने ही अंदाज में