सार संदेश
जन्म मृत्यु औ काल पे चलै न कोई ज़ोर
विनयदास बस देखिए, जब जो आये दौर
विनय दास धीरज धरो,ना तड़ातड़ी कुछ होय
समय पाय कारज भये , क्यों चिंता कर कोय
जल प्रवाह नीचा रहे, हवा चढ़ी असमान
निज सुभाव में जो रहे वो ही धीर सुजान
जर जमीन जोरू गये,मन हो गया विरागी
इसको ज्ञान न जानिए,गिरे पड़े को त्यागी
मन से हारे हार है, मन जीता सोई जीत
रख अंकुश विवेक का,चलता जा तू मीत
सब संसारी खेल निराले,नियम सहित तू खेल
तन,मन,की शुचिता रखना, जासे होय न फेल
मेघा बरसें समय से, सकल जगत हरिआय
जब बरसे वो इधर-उधर, रहा-सहा भी जाय
मौसम आये फल पकै, समय भये सब काम
बेमौसम,बेसमय करन से, ना गुठली ना आम