बजाकर तालियों पर तालियां, ज़िंदगी नचाती है। कभी नौकर, कभी साहब, कभी जोकर बनाती है।।
कि धरकर पाँव वक्त का, सीने पर अपने। कभी दुख कभी, सुख के, झूले झूलाती है।।
सुकून देती है हरे पेड़ सी, फल भी देती है। कि आता है जब पतझड़, हमें फिर से डराती है।।
ज़िंदगी की कड़ी धूप, छांव से, तुम टूट मत जाना। बनार्ती है गमों को गुरु, हमें जीना सिखाती है।।