कविता: ज़हर अंग्रेजों का
घोलकर दिया ज़हर शरबत में अंग्रेजों ने हमने भी पी लिया
छोड़कर हिंदी अपनी अंग्रेजी की गुलामी को हमने जी लिया
करते रहे सब राज़ हम पर हमारी मज़बूरी हमें बनाकर
हम भी बेवकूफी करते रहे डर डरकर अपना मुँह सी लिया
प्राथमिकता दी हमने हिंदी से अधिक अंग्रेजी को अक्सर
हमने तो ज़हर ख़ुद बनाया सबको पिलाया ख़ुद भी पी लिया
अंग्रेजी हम तो बोलते ही रहें अक्सर पर बच्चों को भी बोलने को मज़बूर करा
न बोलने पर उनके हमने उन्हें पीटा,रूलाया ख़ुद झूठी ज़िन्दगी जी लिया
आज अंग्रेजी बड़े चाव से बोलते है हम भुलाकर अपनी हिंदी
अपनी भाषा का कब्र किसी और ने नहीं हमने ख़ुद खोद ही लिया।
- निलेश प्रेमयोगी