इश्क़ का समंदर नौका-ए-दर्द से पार किया
कसूर था मेरा मैंने वेवफा से प्यार किया
कि दर्द-ए-दिल बढ़ता ही रहा मेरा हर एक दफ़ा
मैंने फिर भी दर्द बांटने से इन्क़ार किया
हर दफ़ा और गिरता रहा मैं अपनी नज़रों से,
फ़िर भी मैंने तो उससे ही मुसलसल प्यार किया
दर्द के समंदर में हर रोज़ डूबते रहे हम
कि उसने मेरे आगे किसी और को प्यार किया
दर्द को भी खुशी समझकर जीता रहा तू "प्रेम"
कि इस हद तक उस बेपर्दा बेवफा से प्यार किया।
- निलेश प्रेमयोगी