बिहार की जातीय गणना विकास नहीं विद्वेष लाएगी।बिहार में 1978 से आरक्षण है।परन्तु ओबीसी आरक्षण के अन्दर वर्गीकरण से भी हकमारी हो रही है।बिहार में पिछड़े को 8 प्रतिशत अति पिछड़े को 12 प्रतिशत महिला और अगड़े गरीब को 3-3 प्रतिशत आरक्षण है। पर केन्द्र में एक मुश्त 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण है। 33 वर्षों से सत्ताशीन रहे पिछड़ी जातियों के नेता आरक्षण में सुधार क्यों नहीं लाये।लाते क्यों अति पिछड़े पिछड़ते ही रहे और मलाई खाते रहे यादव,कुर्मी,कुशवाहा। मलाई स्तर सालाना आठ लाख की आय वाले फर्जी सर्टिफिकेट तैयार कर मलाई खा रही हैं।
वर्तमान जातीय गणना में 36 प्रतिशत अतिपिछड़ों व 27 प्रतिशत पिछड़े के आधार पर आर्थिक सर्वे प्रकाशित कर जो भी योजना बने बननी चाहिए।जिसकी जितनी भागीदारी उसको उतनी हिस्सेदारी,पर विकास किसका हुआ है।जब नीतीश कुमार जी की जाति तोड़ो समाज जोड़ो और तेजस्वी कुमार की ए टू जेड की बात हो रही है तो जातीय गणना फिर से जातियों में विभाजन व समाज तोड़ना नहीं है क्या ?सब वोट की राजनीति है।विकास की नीति नहीं।