Quotes by Mukteshwar Prasad Singh in Bitesapp read free

Mukteshwar Prasad Singh

Mukteshwar Prasad Singh Matrubharti Verified

@muktmukeshgmailcom
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यह शहर है बदनसीबों का,बदलना है जिसकी तस्वीर ।
सोचो,जरा सोचो! बतलाओ,कैसे बदलें इसकी तकदीर।
नयी शक्ति से ऊर्जस्वित हों,नयी युक्ति से गढ़े तदवीर।
अंध भक्ति में,लोभ लाभ हेतु,झूठ सच से बचें स्थवीर।
राह कांटों की,साथ सांपों की,हाथ धोखों की है राहगीर।
दम्भ पालें ,सांसें साधें,हिम्मत हो दृढ़ फिर बदलें तस्वीर।
- Mukteshwar Prasad Singh

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यह शहर है बदनसीबों का,बदलना है जिसकी तस्वीर ।
सोचो,जरा सोचो! बतलाओ,कैसे बदलें इसकी तकदीर।
नयी शक्ति से ऊर्जस्वित हों,नयी युक्ति से गढ़े तदवीर।
अंध भक्ति में,लोभ लाभ हेतु,झूठ सच से बचें स्थवीर।
राह कांटों की,साथ सांपों की,हाथ धोखों की है राहगीर।
दम्भ पालें ,सांसें साधें,हिम्मत हो दृढ़ फिर बदलें तस्वीर।

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रक्षाबंधन रिश्तों का बंधन।
बहन की रक्षा भाई का वचन,
भाई बहन का पवित्र ये रिश्ता ।
जिसने बनाया जग को कंचन,
निभाना इसको जनम जनम।
चाहे मांग ले भाई का जीवन।।

* मुक्तेश्वर
- Mukteshwar Prasad Singh

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रक्षाबंधन रिश्तों का बंधन।
बहन की रक्षा भाई का वचन,
भाई बहन का पवित्र ये रिश्ता ।
जिसने बनाया जग को कंचन,
निभाना इसको जनम जनम।
चाहे मांग ले भाई का जीवन।।

* मुक्तेश्वर

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वर्षा की बूंदें बरसे झमाझम,
हरी भरी धरती नाचे छमाछम।
गीत गाये नदियां, पंछियों के सरगम,
झरनों के झर झर दृश्य ये मनोरम।

चमकती बिजलियां खनकती घटाएं,
चन्द्रमा की लुकाछिपी दमकती कलाएं।
रात की सौगात, मचलती भावनाएं,
सपनों के संग संग महके समागम।
वर्षा की बूंदे बरसे झमाझम।

देश वेश,खान पान, लोकरंग मधुर तान,
पावस अमावस में दादुरों के टरर गान।
बादलों के फाहे बीच टिमटिमाते तारेगण,
जुगनुओं के झिलमिल रात भी चमाचम।
वर्षा की बूंदे बरसे झमाझम।

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फूलों की वादियां, पर्वतों की चोटियां,
बर्फ के फाहों बीच चीर की पत्तियां,
मनभावन दृश्यों में नाचती जवानियां,
मंद ठंडी हवाएं, सुकून देती झाड़ियां।

झील के झूलों में डगमगाती डेंगियां,
कुदरती नजारों को ओढ़े पहाड़ियां,
परिंदों के गुंजन संग झूमती डालियां,
स्वर्ग सी घाटी में इठलाती जोड़ियां।

घाटियों की ओट में हो रही सरगोशियां,
हर तरफ बिछी यहां कांटों की क्यारियां,
घेर लिए जल्लादों की क्रूरतम हथेलियां,
धर्म पूछ भेद गयी सनसनाती गोलियां ।

*मुक्तेश्वर की अभी अभी लिखी गयी कविता -01/05/2025 ,5.10 PM

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https://youtu.be/8Q1IiOE9CMw



my second Lyrics in the voice of Singer Smita jha
राम लौटे अवध वनवास से,
अब दिवाली मनाओ रे,
घर घर दीप जलाओ रे,
घर को रोशन बनाओ रे।

दीये की ज्योति, मन को दे शक्ति,
जन जन में भक्ति,नफरत से मुक्ति,
घृणा द्वेष मिटाओ रे,
राम लौटे अवध वनवास से,
अब दिवाली मनाओ रे।
घर घर दीप जलाओ रे।।

दुष्ट रावण ना जन्मे,क्रूर कंश ना पनपे,
राम नाम हो लव पे, दया प्रेम ही बरसे,
ऐसा देश बनाओ रे,
राम लौटे अवध वनवास से,
अब दिवाली मनाओ रे।
घर घर दीप जलाओ रे।।
*रचनाकार कवि मुक्तेश्वर प्र सिंह

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https://youtu.be/ZnS4rOxThWY


my Lyrics in the voice of Singer Brajesh Singh
कण कण में श्रीराम,कण कण में सियाराम,
धन्य अयोध्या नगरी ये,गूंजे जय श्री राम।
बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम, बोलो राम।

साकार हुआ अब सपना,बना अयोध्या धाम,
बालवृद्ध सब निकल पड़े, लेने राम का नाम।
कण कण में श्रीराम,कण कण में सिया राम,
बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम, बोलो राम।

सूने पड़े अवध में आये,दिव्य रूप में राम,
घंटों से झंकृत हैं,वहां का सुबहो शाम।
बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम।

रामलला के भारत में चंहुओर राम का नाम,
रामराज्य में सबकी भलाई,आये हैं श्रीराम।
बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम,बोलो राम।

* रचनाकार कवि मुक्तेश्वर

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सफेद कुर्ते में लिपटी, रक्त सने मांस के टुकड़े।
कितना क्रूर है हंसता हुआ मुस्कान के चेहरे।
सच जानकर भी मौन सियासतदान के मोहरे।
कसम ऐसे इंसानों की चाल में पलते बड़े खतरे।

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चांद की नवल धवल दूध जैसी रश्मियां,
नभ में बिखेर रही अमृत घुली शक्तियां।
धरती पर नाच उठी जीव जन्तु पत्तियां,
रात शरद चांद की पक्षियों में मस्तियां।

रात भर जगे जगे नहा रहे किरणों में,
सूर्य आज ठहर जा देख चांद व्योम में।
चकोर की खोज को आज खत्म होने दे,
छिपे हुए चकवा को चांदनी में ढूंढने दे।
शरद की पूर्णिमा बरसा रही प्रेम प्रीत,
समेट लो अंजलि में नेह प्रेम बंटने दे।

#मुक्तेश्वर मुकेश
@शरद पूर्णिमा

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