।।लड़के भी त्याग करते हैं साहब।।
बड़ी याद आती है घर की।
मगर जा नही सकता।।
में कितनी तकलीफ में रहता हूं।
किसी को बता नही सकता
इतना दर्द रहता है।
फिर भी ड्यूटी जाना पड़ता है
हाथों में छाले पड़ गये।
फिर भी रोटी पकाना पड़ता है।।
सुबह जब उठता हूं मां।
मन बड़ा ब्याकुल होता है।।
पर क्या करू मां।
रोज मुझे काम पर तो जाना होता है।।
इसी प्रकार व्यतीत होती है हम लड़कों की जिंदगी साहब।
इन्हें तो हर फर्ज निभाना पड़ता हैं।।
।।लड़के भी त्याग करते हैं साहब।।
लेखक
जितेंद कुमार झा
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