जब इंसाँ डूब जाता है ग़म-ए-यार में फ़िर कुछ रखा नहीं होता मौसम-ए-बाहर में
लड़कियां बदल लेती हैं नज़रे और प्यार भी लड़के नम्बर तक नहीं बदलते इंतिज़ार में
बस उसके सिवा मेरे पास आ जाते हैं सभी कुछ कमियाँ ही होंगी इस दिल के पुकार में
कोई आशिक़ था जो अब शायर बन बैठा ये खबर भी छपवा देना कभी अखबार में
जीतने वालों ने फ़क़त जीतना ही सीखा है पर ज़िंदगी ज़्यादा सिखाती है इश्क़-ए-हार में
कोई बे-कोशिश ही उसे हासिल कर जाएगा मैंने जान तक लुटा दी है जिसके प्यार में